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________________ -२३ जैनी :- इस रीति से आप यह तो बताइये कि ईश्वर को न्यायकारी तुमारे मत में किस प्रकार से मानते हैं ? * आरियाः -- राजा की तरद; जैसे चोर चोरी कर लेता है, फिर वह चोर स्वयं ही कारागार में ( कैद में) नहीं जाता है; उस को राजा ही दम देता है ( कैद करता है). ऐसे दी ईश्वर जीवों को उन के कर्म का दएक (फल) देता हैं. जैनी :- वह तस्कर (चोर) राजा की सम्मति ( मर्जी) से चोरी करता है वा प्रपनी ही इच्छा से ? प्रारिया:- अपनी इच्छा से; क्यों कि राजा लोगों ने न्यायकारी पुस्तक बना रक्ख हैं, और प्रत्येक स्थान में घोषणा करवा दी हैं कि कोई भी तस्करता ( चोरी ) मत करे; और अपने पहरेदार नियत कर रक्खे हैं, इत्यादि.
SR No.010467
Book TitleSamyaktva Suryodaya Jain arthat Mithyatva Timir Nashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParvati Sati
PublisherKruparam Kotumal
Publication Year1905
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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