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________________ ૨૧૫ ..., जैनी:-अच्छा दम से ही पूगे,तो हम 'दी बता देते हैं. रागद्वेष के प्रयोग से उख . सुख माना जाता है; परन्तु शरीर और मन । - यह दोनों ही जम हैं.जम को तो दुःख, सुख का ज्ञान नहीं होता है, दुःख सुख के ज्ञान वाले चेतन (जीव) शरीर में न्यारे होते हैं: यदि जम को ज्ञान होता, तो मुर्दो को नी झान. होता. और यदि सब का आत्मा एक ही होता, . अर्थात् सब में एक ही ब्रह्म होता तो एक दूसरे का दुःख सुख दूसरे को अवश्य ही होता. . (२०) . . . . . नास्तिकः-जब यों जाने कि मैं जीव हूं, तब उसको जय होता है; जब यों जाने कि मैं जीव नहीं परमात्मा हूं तब निर्णय हो जाता है. जैनी:-इस तुमारे कथन प्रमाण से तो — यों हुआ, कि जब तक चोर यों जाने कि मैं __ चोर हूं, तब तक चोरी का जय है,और जब
SR No.010467
Book TitleSamyaktva Suryodaya Jain arthat Mithyatva Timir Nashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParvati Sati
PublisherKruparam Kotumal
Publication Year1905
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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