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________________ क्यों कि इश्वर नाम तो और ऐश्वर्या वालोंका भी होता है, परन्तु खास नाम ईश्वर का मुक्त दी ठीक है; जैसे कि स्वामी दयानन्द ने जी "सत्यार्थ प्रकाश" (संवत १९५४ के उपे हुए) समुल्लास प्रथम पृष्ठ १६ मी पंक्ति नीचे ३ में ईश्वरका नाम मुक्त लिखा हैं; इसीको जैन मत में सिह पद कहते हैं. और नी बहत से ग्रंथों में ईश्वर की ऐसे ही स्तुति की गई है; जैसे कि मानतुङ्गाचार्य कृत "नक्तामर स्तोत्र" काव्य : श्लोक. . त्वामव्ययं विन्नु मचिन्त्य मसंख्य माद्यं । ब्रह्माण मीश्वर मनन्त मनंगकेतुम् । यो गीश्वरं विदितयोग मनेकमेकं। ज्ञानस्वरुप ममलं प्रवदन्ति सन्तः ॥१॥ इस उल्लिखित श्लोक का अर्थ:-हे प्रनो! सन्तजन आप को एसा कहते हैं: अव्ययम्-अविनाशी; विजुर्म-सव शक्तिमान्; अ
SR No.010467
Book TitleSamyaktva Suryodaya Jain arthat Mithyatva Timir Nashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParvati Sati
PublisherKruparam Kotumal
Publication Year1905
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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