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________________ १२७ और तुमारा दयानन्द भी उक्त सत्यार्थ प्रकाश' के एएए पृष्ठ पर हमारी जान्ति इस विषय में प्रश्नोत्तर करके लिखता है. प्रश्नः-स्तुति करने से ईश्वर उनके पाप छुमा देगा? उत्तरः-नहीं. प्रश्नः-तो फिर स्तुति क्यों करनी? उत्तरः-स्तुति से ईश्वर में प्रीति उसके गुण, कर्म, स्वभाव से अपने गुण, कर्म, स्वजाव का सुधारना है. ११ वां प्रश्न. आरिया-क्यों जी, पहिले जैन है वा आर्य ? जैनी:-आर्य नाम तो जैन ही का है, और जैन धर्म ही के करने वाले जिन ३ देशों में थे, जन २ देशों का नाम, प्रज्ञापनजी सूत्र में आर्य देश लिखते हैं. और इसी का . .. ... . .
SR No.010467
Book TitleSamyaktva Suryodaya Jain arthat Mithyatva Timir Nashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParvati Sati
PublisherKruparam Kotumal
Publication Year1905
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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