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________________ नामा यह ग्रन्थ श्रीतपगच्छाचार्य श्री १००८ श्रीमद्विजयानंदसरि प्रसिद्ध नाम आत्माराम जी महाराजने संवत् १९४० में बनाया जिसको संवत् १९४१ में भावनगर (काठियावाड़) की श्रीजैनधर्म प्रसारक सभाने अहमदाबादमें गुजराती बोलीमें और गुजराती ही अक्षरोंमें छपवाकर प्रसिद्ध किया, परंतु पंजाब मारवाड़ादि अन्य देशोंमें उसका प्रचार न होनेसे बंडौदास्टेटनिवासी परमधर्मी शेठ गोकल भाईने प्रयास लेकर शास्त्री अक्षरों में संवत् १९४३में छपाकर जैसाका वैसाही प्रसिद्ध किया, तथापि बोलीका फरक होनेसे अन्य देशोंके प्रेमी भाइयोंको यथायोग्य लाम नहीं मिला इसवास्ते शेठ गोकलभाईकी खास प्रेरणासे श्रीआत्मानंद जैनसभा पंजाबकी आज्ञानुसार अपने प्रेमो शुद्धजैनमताभिलाषी भाइयोंके लिये यथाशक्ति यथामति इस ग्रंथको सरल भाषामें छपवानेका साहस उठाया है, और इससे निश्चय होता है कि आप लोग इस ग्रंथको संपूर्ण पढ़कर मेरे उत्साहकी वृद्धि जरूर ही करेंगे। . यद्यपि पूर्वे बहुत बुद्धिमान आचार्योंने इस ढूंढकमतका सविस्तर खंडन पृथक् २ ग्रंथोंमें लिखा है। श्रीसम्यक्त्वपरीक्षा नामक ग्रथ अनुमान दशहजार श्लोक प्रमाण है उसमें ढूंढकमती की बनाई ५८ बोलकी हुंडीका सविस्तर उत्तर दिया है। श्रीप्रचनपरीक्षा नामा ग्रंथ अनुमान वीस हजार श्लोक है उसमें ढूंढकमत की उत्पत्ति सहित उनके किये प्रश्नोंके उत्तर दिये हैं। श्रीमद यशो विजयोपाध्यायजीने लींबड़ी (काठीयावाड़) निवासी मेघजी दोसी जो दंढिये थे उनके प्रतिबोध निमित्त श्रीवीरस्तुतिरूप हुंडीस्तवन बनाया है। जिसका बालावबोध सूत्रपाठ सहित सविस्तर पंडित शिरोमणि श्रीपप्रविजयजी महाराजने बनाया है। जिसकी इलोक
SR No.010466
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1903
Total Pages271
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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