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________________ ( ४८ ) और तिस कालमें तो युगलिये नव कोटाकोटि सागरोपमसे भरत क्षेत्रमें थे, उनको तो यह बौडी प्रमुखका करना है नहीं, तो तिस से पहिले की अर्थात् नव कोटाकोटी सागरोपम जितने असंख्यातेकाल की वे वोडीयां रही, तो श्रीशंखेश्वर पार्श्वनाथ की प्रतिमा तथा अष्टापद तीर्थोपरि श्रीजिनमंदिर देव सानिध्यसें असंख्याते कालतक रहे इसमें क्या आश्चर्य है ? प्रश्न के अंतमें जेठा लिखता है कि "पृथिवीकायकी स्थिति तो बाइसहजार (२२०००)वर्षकी उत्कृष्टी है, और देवतायों की शक्ति कोई आयुष्य बधानेकी नहीं" इसतरां लिखनेसे लिखने वालेने निःकेवल अपनी मूर्खता दिखलाईहै क्योंकि प्रतिमा कोई पृथिवीकायके जीवयुक्त नहीं है, किंतु पृथ्वीकायका दल है तथा जेठा लिख . ता है कि “पहाडतो पृथ्वीके साथ लगे रहते हैं इसवास्ते अधिकवर्ष रहते हैं, परंतु उसमेंसे पत्थरका टुकडा अलग किया होवे तो बाइस हजारवर्ष उपरांत रहे नहीं" इस लेखसेतो-वो पत्थर नाश होजावे अर्थात् पुदगल भी रहे नहीं ऐसा सिद्ध होता है, और इससे जेठे की श्रद्धा ऐसीमालूम होतीहै कि किसी ढूंढकका सौ (१००)वर्ष का आयुष्य होवे तो वो पूर्ण होए तिसका पुदगलेभी स्वमेवही नाश हों जाताहै, उसको अग्निदाह करना ही नहीं पड़ता ! ऐसे अज्ञानी के लेखपर भरोसा रखना यह संसार भ्रमणका ही हेतु है ॥ इति ॥ इति तृतिया प्रश्नोतर खंडनम् ॥
SR No.010466
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1903
Total Pages271
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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