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________________ । ( ३०६ ) न भूलाइये। करो सुगुरु संगाइ रूप शिक्षा वरताई कुछ डरो न डराइ दास खुशी मन भाईये ॥१२॥ कुंडलीछंद-दरवदरव सब जग दिसे भाव दिसे नहीं सोय विना दरव थी ज्ञान कब ज्ञान दरव थी होय,ज्ञान दरव थी होय दरख मुनि धार चरित्तर, दरव सामायक ठवें दरव पुजा इम मितर, अंत भाव जिन केवली जाने मन की सरव, भावचिन्ह कछु नहिं दिसे दिसे जगत सब दरव॥ सवैया-मास आदित्य आनंद ऐसे संवतका छंद भूत वन्ही ग्रह चंद कृष्ण त्रोदशी वैशाखकी आदि अंतसे विचार सबी दोष वमडार भव्य सूतर आधार वानी सुधारल चाषकी । सुमत बन सरकी कुमतमत हरकी युगत ज्ञान करकी भली हे शुभभाषकी। छोड झूठते जंजाल धरसूत्रमें ख्याल शहर गुजरांजोवाल दासखुशी कहे लापकी ___कुंडलीछंद-देख कमति मन खिजो मत करो न रोस गुमान जैसासूत्रमें कहा तैसा दियो बखान, तैसा दिया बखान जास नर मरम न भासे, करे सुगुरु का संग नैन जग संसै नासै । पक्ष पात तज देखिये खुशी सूतर की रेख,ज़िनआज्ञा धर भालपर खिजो न कुमति देख ॥ __ सोरठा-रामबखशकेसाथ शेरू जाती बानिया लुदहानेवास बारमास सठ भाषियो ॥ उलट ज्ञान की रीत जब हम वो अवणे सनीजो सूत्रकी रीत तब हम भाषा ये करी ॥ इतिश्रीसुमतिप्रकाशबारहमास सम्पूर्णम् शुभमस्तु ॥ .
SR No.010466
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1903
Total Pages271
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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