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________________ ( २८८ ) उसको त्यागके अणगारवास साधुपणा अंगीकार करूंगा? २, तीसरी संलेषणाकामनोरथ पूर्ववत् जानना। .. इससेभी ऐसे ही सिद्ध होता है कि श्रावक सूत्र वांचे नहीं इत्यादि अनेक दृष्टांतों से खुलासा सिद्ध होता है कि मुनि सिद्धांत पढें और मुनियों को ही पढ़ावें,श्रावकों को तो आवश्यक, दशकालिकके चार अध्ययन और प्रकरणादि अनेक ग्रंथ पढ़ने,परंतु श्रावकको सिद्धांत पढनेकी भगवंतने आज्ञा नहीं दी है ॥ इति ॥ o casokacaco.. - (४६) दंढिये हिंसा धर्मों हैं इस बावत। इस ग्रंथको पूर्ण करते हुए मालूम होता हैकि जेठे ढूंढकको बनायां समकितसार नामा ग्रंथ गोंडल (सूवा काठीयावाड) वाले कोठारी नेमचंद हीराचंदने छपवाया है उसमें आदिसे अंततक जैन शास्त्रानुसार 'और जिनाज्ञा मूजिव वर्त्तने वाले परंपरागत जैन मुनि तथाश्रावकोंको(हिंसा धर्मी)ऐसाउपनाम दियाहै औरओप देया धर्मीवनगये हैं,परंतुशास्त्रानुसारदेखनेले तथा इनढूंढीयोंका आचार व्यवहार,रीतिभांति और चालचलन देखनेसे खुलासा मालूमहोता है कि यह ढूंढीयेही हिंसाधर्मी हैं और दयाका यथार्थ स्वरूप नहीं समझते हैं। . सामान्यदृष्टिसे भी विचार करें तो जैसे गोशाले जमालि प्रमुख कितनेक निन्हवोंने तथा कितनेक अभव्य जीवोंने जितनी स्वरूपदया पाली है । उतनी तो किसी ढूंढेकसे भी नहीं पल सक्ती है; फकत मुंह से दया दया पुकारना ही जानते हैं, और जितनी थह स्वरूपदया पालते हैं उतनी भी इनको निन्हवोंकी तरह जिनाज्ञाके विराधक होने से हिंसाका ही फल देनेवाली है।
SR No.010466
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1903
Total Pages271
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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