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________________ ( २०० ) भी सन्मूछिम है क्योंकि इनकी परंपराय शुद्ध जैनमुनियों के साथ नहीं मिलती है। (७): जैसे गोशाला-स्वकपोलकल्पित वचन बोलता था, तैसे इंढिये भी स्वकपोलकल्पित शास्त्रार्थ करते हैं।-- " .. (८) जैसे गोशाला धूर्त था, तैसे ढूंढिये भी धूर्त हैं। क्योंकि यह भद्रिक जीवोंको अपने फंदेमें फंसाते हैं। . . . . .... . (९)जैसे गोशाला अपने मन में अपने आपको झूठा जानता था परंतु बाहिर से अपनी रूढी तानता था, तैसे कितनेक दंढियेभी अपने मनमें अपने मतको झूठा जानते हैं परंतु अपनी रूढीको नहीं छोड़ते॥ - (१०) जैसे गोशालेके देवगुरु नहीं थे, तैसे ढूंढियोंकेभी देवगुरु नहीं हैं । क्योंकि इनका पंथतो गृहस्थीका निकाला हुआ है। -- (११) जैसे गोशाला महा अविनीत था,तैसे ढूंढियेभी जैनमत में महा अविनीत हैं । इत्यादि अनेक बातोंसे ढूंढिये गोशाले सुल्य सिद्ध होते हैं । तथा ढूंढिये कितनेक कारणोंसे मुसलमानों सरीखे भी होसक्ते हैं, सो वह लिखते हैं। ____(१) जैसे मुसलमान नीला तहमत पहनते हैं, तैसे कितनेक ढूंढिये भी काली धोती पहनते हैं ।। (२) जैसे मुसलमानोंके भक्ष्याभक्ष्य खानेका विवेक नहीं है, तैसे ढूंढियेके भी वासी, संधान (आचार) वगैरह अभक्ष्य वस्तुके. भक्षणका विवेक नहीं है ॥ (३) जैसे मुसलमान मूर्तिको नहीं मानते हैं, तैसे ढूंढियभी जिनप्रतिमाको नहीं मानते हैं ।
SR No.010466
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1903
Total Pages271
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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