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________________ ( २५२ ) भावना निमित्त वोह पुष्प श्रावक खरीद करके जिनप्रतिमाको चढ़ावे तो उससे अरिहंतदेवकी भक्ति होती है, और फूलोंकी भी दया पलती है हिंसा क्या हुई? . .. जेठमल लिखता है कि "गणधरदेव सावध करणीमें आज्ञा न देखें" उत्तर-सावयकरणी किसको कहना ? और निर्वद्यकरणी किसको कहना ? इसका जेठको और अन्य टूढियों को ज्ञान होवे ऐसा मालूम नहीं होता है, जिन पूजादि करणीको वेसावय गिनते हैं, परंतु यह उनकी मूर्खता है, क्योंकि मुनियों को आहार,विहार निहारादिक क्रिया और श्रावकोंको जिनपूजा साधर्मिवात्सल्य प्रमुख कितनीक धर्म करणीयोंमें तीर्थंकरदेवनेभी आज्ञा दी है,और जिसमें आज्ञा होवे सो करणी सावध नहीं कहलाती है । इसबाबत २७में प्रश्नोत्तरमें खुलासा लिखा गया है। तथा गणधरमहाराजाओं ने भी उपदेश में सर्व साधु श्रावकोंको अपना अपना धर्म करनेकी आज्ञा दी है। ढूंढियोंके कहे मुजिब गणधरदेव ऐसी करणीमें आज्ञा न देते होवे तो साधुको नदी उतरनेकी आज्ञा क्यों देते? वरसते वरसादमें लघुनीति वड़ीनीतिपरिठवनेकी आज्ञा क्यों देते? साध्वी नदीमें रुडती जाती होवे तो उसको निकाल लेनेकी साधु को आज्ञा क्यों देते ? इसी तरह कितनी ही आज्ञा दी है; इस वास्ते यह समझना कि जिस जिस कार्यमें उन्होंने आज्ञा दी है, हिंसा जानकर नहीं दी हैं । इसवास्ते इसबाबत जेठे मूढमतिका लेख बिलकुल मिथ्या सिद्ध होता है । - ___“सामायिकमें साधु तथा श्रावक पूर्वोक्त महिया शब्दसे पुष्पादिक द्रव्यपूजाकी अनुमोदना करते हैं। साधुको द्रव्यपूजा करनेका
SR No.010466
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1903
Total Pages271
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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