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________________ है, इसवास्ते मंदिर न जानेके प्रायश्चित्तका अधिकार श्रीमहा कल्पसूत्रमें है और अन्यमें नहीं है इतनेमात्रसेजेठेकी करी कुयुक्ति कुछ सच्ची नहीं हो सक्ती है । श्रीहरिभद्रसूरि जोकि जिनशासन को दीपानेवाले महाधुरंधर पंडित १४४४ ग्रंथके कर्ता थे तिनकी जेठमलने व्यर्थ निंद्याकरी है सो जेठमलकी मूर्खताकी निशानी है। ___अभव्यकुलकमें अभव्यजीव जिस जिस ठिकाने पैदा नहीं होसक्ता है सो दिखाया है इसबाबत जेठमल लिखता है कि "भव्य अभव्य सर्व जीव कुल ठिकाने पैदा होचुके ऐसे सूत्रमें कहा है इस वास्ते अभव्यकुलक सूत्रोंसे विरुद्ध है" जेठे ढूंढकका यह लिखना महामिथ्यादृष्टि पणेका सूचकहे यद्यपि शास्त्रोंमें ऐसाथकनहै कि न सा जादू न सा जोणी नतं ठाणं नतं कुलं । नजायान मुया जत्थ सवे जीवा अणंतसो? परंतु यह सामान्य वचन है । विचार करोकि मरुदेवीमाताने कितने दंडक भोगे हैं? सो तो निगोदमेंसे निकलके प्रत्येकमें आकर मनुष्य जन्म पाकर मोक्षमें चली गई हैं, और शास्त्रकारतो सर्व जीव सर्व ठिकाणे सर्व जातिपणे अनंतीवार उत्पन्न हुए कहते हैं ।जेकर जेठ मल ढूंढक इस पाठको एकांत मानता है तो कोई भी जीव सर्वार्थ सिद्ध विमान तक सर्वजाति सर्वकल भोगे विना मोक्ष में नहीं जाना चाहिये और सूत्रोंमें तो ऐसे बहुत जीवोंका अधिकार है जो कि अनुत्तरविमानमें गये विना सिद्धपदको प्राप्त हुए हैमतलब यह किटूंढक सरीखे अज्ञानी जीव विना गुरुगमके सूत्रकारकी शैलिको कैसे जाने ? सूत्रकी शैलि और अपेक्षा समझनी सो तो गुरुगममें ही रही हुई है,इसवास्ते अभव्यकुलक सूत्रके साथ मुकाबला करने
SR No.010466
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1903
Total Pages271
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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