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________________ श्री भगवती सूत्र के २५में शतक के ६ छठे उद्देशे में कहा है कि व्यावहारिक छेदोपस्थापनीय चारित्र विना गुरु के दिये आता नहीं है और इस पंथ का चारित्र देने वाला आदि गुरु कोई है नहीं क्योंकि ढुंढक पंथ सूरत के रहने वाले लवजी जीवा जी तथा धर्मदास छींबे का चलाया हुआ है तथा इस का आचार और वेष वतीस सूत्र के कथन से भी विपरीत है, क्योंकि श्री प्रश्न व्याकरण सूत्र के पांच में संवर द्वार में जैन साधके यह उपकरण लिखे हैं, तथा च तत्पाठः-पडिग्गहो पायबंधण पाय केसरिया पायठवणं च पडलाइंतिन्निव रयत्ताणं गोच्छओ तिन्निय पच्छागा रओहरण चोल पहक मुहणंतगमाइयं एयं पिय संजमस्स उबवूहट्टयाए॥ भावार्थ-पात्र १ पात्र बंधन २ पात्र के शरिका ३ पात्रेस्थापन ४ पडले तीन ५ रजस्त्राण ६ गोच्छा ७ तीन प्रच्छादक १० रजोहरण ११ चोलपट्टा १२ मुखवस्त्रिका १३ वगैरह उपकरण संजम की वृद्धि के वास्ते जानने॥ ऊपर लिखे उपकरणों में ऊन के कितने, सूतके कितने, लंबाई वगैरह का प्रमाण कितना, किस किस प्रयोजन के वास्ते और किस रीति से वर्त्तने, वगैरह कोई भी ढुंढक जानता नहीं है, और न यह सर्व उपकरण इन के पास है, तथा. सामायिक, प्रतिक्रमण दीक्षा, श्रावक व्रत, लोच करण, छेदोपस्थापनीय चारित्र, वगैरह जिस विधि से करते हैं, सो भी स्वकपोल कल्पित है, लंबा रजोहरण, विना प्रमाण का चोलपट्टा, और कुलिंग की निशानी रूप दिन रात मुख वांधना भीजेनशास्त्रानुसार नहीं है, मतलब प्रायः कोई भी क्रिया इस पंथ की जैन शास्त्रानुसार नहीं है, इस वास्ते
SR No.010466
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1903
Total Pages271
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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