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________________ चालीसवां बोल-६५ मरण दो प्रकार से होता है-आयु के क्षय से और उपसर्ग से । मृत्यु किसी भी प्रकार मे हो मगर कुत्ते की । मौत मरना उचित नही । वीरतापूर्वक मृत्यु का आलिंगन करना चाहिए । वीरतापूर्वक मृत्यु का आलिंगन करने वाला भोजन के प्रत्याख्यान द्वारा मृत्यु पर विजय प्राप्त करता है । भोजन का त्याग करके जो मृत्यु को जीतता है, उसी का अपच्छिममरण होता है। यहां भक्तप्रत्याख्यान का अर्थ सम्पूर्ण अनशन करना है । भगवान् ने कहा कि भोजन का त्याग करने वाला ससार का छेद करता है । शास्त्र में भोजन के प्रत्याख्यान के विषय मे जो कुछ कहा गया है, वह निर्दयता का व्यवहार करने के लिए नही वरन आत्मा के कल्याण के लिए ही कहा गया है। जो व्यक्ति परकीय सहायता का त्याग करता है वही भोजन का त्याग कर सकता है । इस प्रकार आहार का त्याग न करना और आहार-पानी न मिलने के कारण विलाप करते-करते मरना, बारह प्रकार के बालमरणो मे से एक बालमरण है । इस प्रकार का मरण, भोजनपान के त्याग से होने वाला पण्डितमरण नही कहा जा सकता । हा, असमय मे भोजन का त्याग नहीं किया जा सकता । यह तो सब काम कर चुकने के बाद किया जाने चाला काम है । अतएव यह विचार रखना अत्यावश्क है कि सथारा कब करना और कराना चाहिए। . सथारा करने का प्रयोजन क्या है ? इस विषय में शास्त्र में बहुत विचार किया गया है । शास्त्र मे यह प्रश्न किया गया है कि हे भगवन् । मरते समय क्या भूखा रहना
SR No.010465
Book TitleSamyaktva Parakram 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1973
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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