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________________ उपसंहार-३८३ सरलता धारण करे तो अवश्य ही यह निर्णय करने में समर्थ बन सकता है कि सत्य क्या है और असत्य क्या है ? प्रात्मा वास्तव मे सिद्ध के समान है, मगर इस समय मोह में पडा है । इस मोह को हटा देना ही सिद्ध के समान बनने का उपाय है । प्रात्मा का कल्याण आत्मा के पास ही है । यह बात ध्यान में रखकर सम्यक्त्व के विषय मे पराक्रम करो। इससे अवश्य ही स्व-पर का कल्याण होगा। महावीर भगवान ने केवलज्ञान प्राप्त करके जिस धर्म की प्ररूपणा की है और जिमका वर्णन इस अध्ययन मे किया गया है, उसका परिपूर्ण विवेचन तो कोई पूर्ण पुरुष ही कर सकता है । साधारण व्यक्ति के बूते का यह काम नही है। फिर भी आकाश का पार न पाने पर भी पक्षी अपनी शक्ति को अनुसार प्राकाश में उडते ही हैं । ' मैं आकाश का पार 'नही पा सकता' यह सोचकर पक्षी आकाश में उडना नहीं छोड देता । इसी प्रकार यहा अपनी शक्ति और मति के अनुसार सम्यक्त्वपराक्रम अध्ययन का विवेचन किया गया है । अगर सूत्र का विवेचन पूरी तरह तुम्हारी समझ में न आया हो तो भी जितना समझो उतना ही जीवन मे उतारो। इससे तुम्हारा कल्याण होगा । ____सर्वप्रथम वीतराग देव, निम्रन्थ गुरु और केवलिप्ररूपित धर्म पर श्रद्धा करो यही कल्याण MES
SR No.010465
Book TitleSamyaktva Parakram 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1973
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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