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________________ एकत्तरवां बोल-३५५ जाते हैं लेकिन विचार करो कि राग-द्वेष को अधिक कहा जीतना पड़ता है ? बकरे की रक्षा करने में अधिक रागद्वष जीतना पडता है या मनुष्य की रक्षा करने में ? कदा. चित् लोग मनुष्य के प्रति दया दिखलाते भी हैं तो पैसाश्राधा पंसा देकर अपने उत्तरदायित्व से मुक्त हो जाते हैं। वे यह नही सोचते कि मनुष्य के प्रति हमारी गहरी जिम्मेवरी है । वास्तव में मनुष्य की दया किस प्रकार को जा सकती है और मनुष्य की दया करने की हमारे ऊपर कितनी जिम्मेवरी है, यह बात स्पष्ट करने के लिए एक सुना हुआ उदाहरण इस प्रकार है: कहते हैं, अमेरिका में दो मित्र गिरजाघर जा रहे थे। इस गिरजाघर के बाहर कुछ लूले-लंगडे भिखारी पड़े थे । इक लँगड़ों को देखकर एक मित्र को दया आई । दया तो दोनो के हृदय में उत्पन्न हुई थी मगर एक ने अपनी दया सफल करने के लिए जेब से कुछ पैसा निकाल कर भिखारी को दे दिये । यह देख कर दूसरे ने कहा- तुमने इस लँगड़े भिखारी पर दया तो की, किन्तु यह तो भिखारी का भिखारी ही रहा ! हृदय मे दया उत्पन्न होने पर भी और पैसा देने पर भी भिखारी का भिखारीपन तो मिटा नहीं ! सुनते हैं, बम्बई कलकत्ता आदि बड़े शहरो मे लोग प्रायः अन्धो को पैसा देते हैं, आँख वालो को बहुत कम देते हैं । अतएव अनेक भिखारी अपने बालको को आखें इसलिए फोड डालते हैं कि वह अन्धे हो जाएगा तो उन्हे ज्यादा पैसे मिलेंगे। दूसरे मित्र ने पैसा देने वाले से कहा- अगर हमारे मन्तकरण में उस भिखारी के प्रति सचमुच भनुकम्पा हो
SR No.010465
Book TitleSamyaktva Parakram 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1973
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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