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________________ २४-सम्यक्त्वपराक्रम (४) कायर कषाय को नहीं जीत सकता । 'कमजोर गुस्सा बहुत' लोकोक्ति तो प्रसिद्ध ही है । शक्ति होने पर भी क्षमा धारण करने मे ही वीरता है । शक्तिहीन क्षमा कायरता का रूप धारण कर लेती है । इसीलिए कहा गया है ---'दाणं दरिदस्स खमा पभुस्स ।' अर्थात दरिद्रावस्था मे दिया गया दान और प्रभुता होने पर की गई क्षमा विशेष महत्वपूर्ण है । अशक्ति के कारण क्रोध को दबा रखना और मन ही मन दुर्भाव रखना तथा खोटे सकल्प-विकल्प करना कषाय जीतने का सच्चा मार्ग नही है। कितने ही लोग कषाय को न जीतने पर भी कह देते है कि हमने कषाय जीत ली है और हमारे भीतर वीतरागभाव विद्यमान है । ऐसा कहने वालो की परीक्षा करने की, शास्त्र मे एक युक्ति बतलाई है। वह युक्ति यह है कि जिन्होने कषाय पर विजय प्राप्त कर ली होती है, उनके लिए सुख और दुःख एक सरीखे हो जाते है । कषायविजयी का धर्म बतलाते हुए मृगा माता ने मृगापुत्र से कहा था. - लाभालाभ सह दुक्ख जीवियं मरण तहा। समं निदापसंसासु तहा माणावमाणो ॥ अर्थात् - लाभ-अलाभ, सुख-दुःख, जीवन-मरण, निन्दा प्रशसा, तथा मान-अपमान वगैरह मे जो समभाव रखता है, वही सच्चा कषाय-विजयी मुनि है । जिस प्रकार साधनो को समानभाव रखने का उपदेश दिया गया है, उसी प्रकार श्रमणोपासको भी यह उपदेश जीवन में उतारना है । कहने का आशय यह है कि श्रमणोपासको को भी ला
SR No.010465
Book TitleSamyaktva Parakram 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1973
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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