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________________ बासठ से छोसठवां बोल-३०७ शास्त्र का कथन है कि कान, आँख प्रादि इन्द्रियां स्वर्ग भी दिलाती हैं और नरक भी दिलाती हैं । चारित्र को भ्रष्ट करने वाली बातें कान से सुनना नरक-प्राप्ति का मार्ग है और आत्मकल्याण करने वाली बातें सुनना स्वर्ग प्राप्ति का रास्ता है । सक्षेप मे, आशय यह है कि इन्द्रियों __ को बुरे कामो में प्रवृत्त न करके भले कामो मे प्रवृत्त करना ही इन्द्रियनिग्रह का उपाय है । यहा यह प्रश्न हो सकता है कि बुरा काम किसे कहना चाहिए और भला काम किसे कहना चाहिए ? इम प्रश्न का उत्तर यह है कि जिस कार्य को करने के लिए तुम्हारे अन्त करण मे विषम भाव उत्पन्न हो वह बुरा काम है और जिसे करने के लिए समभाव उत्पन्न हो वह भला (प्रशस्त) काम है । अगर तुम्हारा प्रात्मा इन्द्रियो का दास न होगा तो वह स्वय ही बुरे-भले काम की परीक्षा कर लेगा। अगर तुम्हारी सत् असत् का विवेक करने का शक्ति का विकास न हुआ हो तो ज्ञानीजनो की शिक्षा के अनुसार बुरे कामो से हटकर भले कामो मे लगना चाहिए । यो करते-करते एक न एक दिन तुम्हारा आत्मा इन्द्रियो पर सम्पूर्ण विजय प्राप्त कर सकेगा। इन्द्रियो का निग्रह करने के लिए सबसे पहले यह देखो कि चीजें महंगी हैं या इन्द्रिया महंगी हैं ? तुम्हारे कान महँगे हैं या मोतो महगे हैं ? कहने को तो कह दोगे कि मोती की वनिस्वत कान महगे हैं, परन्तु मोती गुम जाने पर उसके लिए जितनी चिन्ता करते हो, उतनी चिन्ता क्या उस वक्त भी करते हो जब कान बुरी बातें सुनने को तैयार होता है ? साधारण तौर पर कान से अच्छे और बुरे शब्द
SR No.010465
Book TitleSamyaktva Parakram 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1973
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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