SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 287
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अट्ठावनवां बोल-२७१ उत्तर -हे गौतम ! काया को सत्यभाव से सयम में स्थापित करने से अर्थात् काया का निरोध करने से जीवात्मा चारित्र के पर्यायो को निर्मल करता है और चारित्र के पर्याय निर्मल करके अनुक्रम से ययाख्यातचारित्र की विशुद्धि करके चार केवली कर्माशो को खपाता है और तत्पश्चात् वह जीवात्मा सिद्ध बुद्ध मुक्त तथा शान्त होकर सब दुःखो का अन्त करता है। व्याख्यान काया का निरोध करने से मर्वप्रथम तो चारित्रपर्याय की विशुद्धि होती हैं । अर्थात् उदयभाव के कारण मलीन हुआ क्षायोरशमिकचारित्र निर्मल हो जाता है । उदयभाव की वृद्धि के कारण क्षायोपशमिकचारित्र दब जाता है और ज्यो-ज्यो उदयभाव घटता जाता है, त्यो त्यो क्षायोपशमिक बढता जाता है । इस प्रकार जो उद्य भाव क्षायोपशमि कभाव को दबाता है वह उदय माव काया का निरोध करने से होन हा जाता है और फलस्वरूप क्षायोपमिक भाव को शुद्धि होती है और जीवात्मा ययाख्यानचारित्र प्राप्त करता है । यथाख्यातचारित्र कुछ बाहर से नहीं पाता । वह तो आत्मा के स्वभाब मे ही विद्यमान है। जैसे सूर्य पर बादल आ जाने के कारण सूर्य ढका हुआ या मलोन दिखाई देता है, उसी प्रकार कर्म के प्रभाव से ययाख्यातचारित्र भी ढका हुप्रा और मलीन रहता है । जब काया का निरोध किया जाता है तो मोहकर्म के कारण यथाख्यातचारित्र पर चढा हुआ मावरण दूर हो जाता है तथा ययाख्यातचारित्र प्रकट हो
SR No.010465
Book TitleSamyaktva Parakram 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1973
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy