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________________ छप्पनवां बोल - २६३ कि अभ्यास करने से मन का निरोध भी किया जा सकता । श्रात्मा का कल्याण मन को समाधिस्थ करने से हो सकता है । अतएव मन को सत्यमाग पर स्थापित करने मे ही कल्याण है । the stic | हम सबका ध्येय आत्मा को सुखी बनाना ही है । मगर प्रश्न यह है कि इस ध्येय की पूर्ति किस प्रकार हो सकती है ? शास्त्र मे आत्मा को सुखी बनाने के जो उपाय बतलाये गये हैं, उन्हे अपनाओ, आत्मकल्याण करो। श्रात्मकल्याण ही श्रात्मसुख की चात्री है। ऐकान्तिक और प्रत्य न्तिक सुख प्राप्त करने से ही आत्मा सुखी हो सकता है । अतएव तुम अगर अपने मन को सत्यमार्ग पर स्थापित करके श्रर्थात् समाधिस्थ करके आत्मकल्याण की साधना का प्रयत्न करोगे तो निस्सन्देह निराबाध आत्मसुख प्राप्त कर सकोगे । హారా
SR No.010465
Book TitleSamyaktva Parakram 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1973
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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