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________________ पचपनवां बोल-२५७ तो गले में पहना हुआ उनका कठा क्यो न उतार लिया जाये ? ऐसा विचार कर वह श्रावक, सामायिक में बैठे हुए सेठजी के पास गया । बोला सेठजी ! आपने सामायिक ली है । संसार को समस्त वस्तुप्रो से सामायिक श्रेष्ठ है । अतएव आप अपनी सामायिक मे स्थिर रहे - विचलित न हो । इतना कहकर श्रावक ने सेठ के गले मे से कठा निकाल लिया । सेठ सामायिक मे स्थिर ही बैठे रहे । वह न कुछ भी बोले और न उन्होने अपना चित्त ही चचल होने दिया। सामायिक पालकर सेठ घर पहुचा । मुनीम आदि ने पूछा आज आपके गले मे कठा क्यो नजर नही पाता ? सेठ ने सोचा- सच कह दू गा तो लोग गरीब श्रावक को हैरान करेंगे तो उसने कह दिया- पड़ गया होगा कही । तुम कठा की इतनी ज्यादा चिन्ता क्यो करते हो ? इम विषय मे किसी को कुछ भी चिन्ता करने को आवश्यकता नही । जब यह शरीर ही मेरा नही तो कठा मेरा कैमे हो सकता है ! कठा ले जाने वाले श्रावक की नीयत साफ थी । जब उसका काम निकल गया तो वह श्रावक कठा वापस ले आया । सेठ ने कहा- कठा मेरा नहीं है। जब यह शरीर ही मेरा नहीं तो कठा मेरा कैसे हो सकता है ? उस श्रावक ने कहा-कठा तुम्हारा नही तो मेरा भी नही है । मैं इसे अपने पास कैसे रख सकता हूं ? इतना कहकर श्र.वक ने सेठ के सामने कठा रख दिया और वह चलता बना । कहने का भाव र्थ यह है कि उपसर्ग का आघात लगने पर भी अगर काया विचलित न हो तो ही सच्चा कायोत्सर्ग कहा जा सकता है । तुम्हे भी कायोत्सर्ग मे दृढ रहना चाहिए
SR No.010465
Book TitleSamyaktva Parakram 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1973
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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