SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 270
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २५४- सम्यक्त्वपराक्रम (५) उत्तर - कायगुत्तपाए संवरं जणयइ, सवरेणं कायगुत्ते पुणो पावासवनिरोह करेइ । शब्दार्थ प्रश्न - कायगुप्ति से जीव को क्या लाभ होता है ? उत्तर - काय गुप्ति ( कायिक सयम ) से संवर ( पापो का निरोध ) होता है और फिर सवर द्वारा जीवात्मा पाप के प्रवाह का निरोध कर सकता है । व्याख्यान कायगुप्ति के पालन से होने वाले लाभ का विचार करने से पहले यह विचार करना आवश्यक है कि मन और वचन के साथ काया भी रहती है, तो फिर काय के विषय मे अलग प्रश्न क्यो किया गया है ? इस प्रश्न का समाधान यह है कि जैसे काया मन के साथ रहतो है, उसी प्रकार मन से पृथक भी है । किसी भी सम्पूर्ण शरीर का वर्णन किया जाये तो उस शरीर के सब अङ्ग उसमे आ जाते हैं, परन्तु जब शरीर के प्रत्येक श्रग का भिन्न-भिन्न वर्णन किया जाना है तो प्रत्येक को अलग मानकर ही वर्णन करना पडता है । गौतम स्वामी के प्रश्न के उत्तर मे भगवान् ने कहाहे गौतम । कायगुप्ति से जीव को सवर की प्राप्ति होती है और सवर के कारण जीवात्मा आने वाले पापकर्मो का निरोध करने में समर्थ होता है । " साधारणतया कायगुप्ति का अर्थ है - काय की रक्षा करना अर्थात काय को निश्चल कर लेना या काय का ममत्व तज देना | परन्तु काय को अप्रशस्त मे से हटाकर प्रशस्त
SR No.010465
Book TitleSamyaktva Parakram 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1973
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy