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________________ छत्तीसवाँ बोल-१७ के लिए कषाय का त्याग करना आवश्यक है। ___ कषाय की तीव्रता के कारण ही नरक आदि नीच गतियो में जाना पडता है। नरफ कही बाहर से नहीं आता । वह तो अपने ही परिणामो में है । कितने ही लोग दु ख माथे पर आ जाने के समय हाय-तोबा मरने लगते हैं । वे यह नही सोचते कि दुःख कहा से और कैसे आया है ? दुःख न बाहर से आते है और न आये ही है । वे तो अपने ही मलीन परिणामों की उपज हैं । मलीन परिणामों का त्याग करना ससार पर विजय प्राप्त करने का मार्ग है । साथ ही मलीन परिणामो के अधीन होना ससोर के अधीन होने के समान है । अतएव जल्दी से जल्दी कषाय का त्याग करना चाहिए । प्रत्येक व्यक्ति को अपने हृदय में यह बात अकित कर रखनी चाहिए कि- 'कषाय की बदौलत ही हमारा स्वाधीन आत्मा पराधीनता में पडा है । आच्मा को स्वाधीन बनाने के वषायशत्रु पर विजय प्राप्त करना चाहिए।' जो स्थान और कारण कषाय उत्पन्न वरने वाला है वही स्थान और कारण कषाय को जीतने वाला भी है । यह बात स्पष्ट करने के लिए श्री उत्तराध्ययनसूत्र मे आया हुआ एक उदाहरण तुम्हे सुनाता हूं। एक बार एक क्षत्रिय ने दूसरे क्षत्रिय को जान से मार डाला । मत क्षत्रिय की पत्नी उस समय गर्भवती थी। वह क्षत्रिय-पत्नी विचार करने लगी- मेरे पति मे थोड़ी बहुत कायरता थी, तभी तो उनकी अकालमृत्यु हुई । वे वीर होते तो अकाल मे मृत्यु न होती । क्षत्रियपत्नी की इस वीर भावना का प्रभाव उसके गर्भस्थ पुत्र पर पड़ा ।
SR No.010465
Book TitleSamyaktva Parakram 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1973
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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