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________________ बोपनवां बोल-२५१ कटक वचन नहीं बोलना, जिससे दूसरे को दु.ख हो और भविष्य मे अपने को पश्चात्ताप करना पडे । अगर जीभ का सदुपयोग करना न पाता हो तो मौन साध लेना ही श्रेयस्कर है। कहा भी है - मौन सर्वार्थमाधकम् ।' अर्थात् मौन सभी अर्थों को सिद्ध करने वाला है। परन्तु जब बोलना हो हो तो आगे-पीछे का विच र करके सत्य, प्रिय और पथ्य ही बोलना चाहिए । योगशास्त्र में कहा है कि- 'जो सत्य वचन बोलता है उमके वचन में सिद्धि बसती है' अर्थात् सत्यभाषी को प्रत्येक कार्य मे सिद्धि मिलती है । श्री प्रश्नव्याकरणसूत्र में कहा है कि सत्य के प्रभाव से प्राग भी शीतल हो जाती है और तलवार भी फूल की माला बन जाती है । इस प्रकार सत्य वचन मे सिद्धि का निवास है। जिस जीभ द्वारा सिद्धि देने वाले सत्य वचन बोले जा सकते हैं, उस जीभ को खगब कामो मे प्रवृत्त करना सर्वथा अनुवित है । जो व्यक्ति सत्य वचन बोलता है वह कभी वचनगुप्ति का पूर्णत पालन करने के लिए निर्विकार बन सकता है और अध्यात्मयोग साध सकता है । अगर कोई व्यक्ति मुख से अविवेकपूर्ण वचन निकालता रहे और अध्यात्मयाग साधने की बात करे तो वह बकवादो व्यक्ति अध्यात्मयोग की साधना किस प्रकार कर सकता है ? अध्यात्मयोग साधने के लिये वचन पर काबू रखने का प्रयत्न करो । ऐसे अनेक प्रसङ्ग आ जाते हैं जव गृहस्थ लोग वचन पर काबू नही रख सकते, परन्तु उस पर काबू रखने का अधिक से अधिक प्रयत्न करना चाहिए । कल्पना करो, तुम्हे एक ऐसा मन्त्र बता दिया जाये कि जिमसे तुम्हारे सभी काम सिद्ध होते हो, तो ऐसा मन्त्र कि जिकलपना कारो, अम्के एक सेखाह मन्त्र बता दिया जाये
SR No.010465
Book TitleSamyaktva Parakram 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1973
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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