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________________ चौपनवां बोल-२४७ शब्दार्थ प्रश्न-- भगवन् । वचनगुप्ति से जीवात्मा को क्या लाभ होता है ? उत्तर-हे गौतम ! वचनगुप्ति (वाणी के सयम) से जीवात्मा विकाररहित होता है और निर्विकार जीव आध्यात्मिक योग के साधनो से युक्त होकर विचरता है । व्याख्यान प्रश्न किया जा सकता है कि अगर मन पर नियंत्रण कर लिया जाये तो फिर वाणी के नियन्त्रण की क्या आवश्यकता है ? इस प्रश्न का पूर्ण उत्तर तो कोई योगी महात्मा ही दे सकते हैं, फिर भी मैं अपनी बुद्धि के अनुसार उत्तर देने का प्रयत्न करता हू: तालाब मे जैसे पानी की आवश्यकता रहती है, उसी प्रकार पानी की रक्षा करने के लिए पाल बांधने की भी आवश्यकता होती है । पानी के अभाव मे पाल बांधने की आवश्यकता नहीं है और पाल बांधे बिना पानी टिक नही सकता। तालाब मे पाल बंधी हो तो पानो भी टिक सकता है और पानी को टिकाए रखने के लिए पाल बांधना आवश्यक होता है । इसी प्रकार मनोगुप्ति के साथ वचनगुप्ति का होना भी आवश्यक है। वचनगुप्ति का साधारण अर्थ वाणी पर काबू रखना है । वचन पर एकदम काबू पा लेना कठिन है । अत एव सर्वप्रथम अप्रशस्त वचन बोलना कम करके प्रशस्त वचन बोलने का अभ्यास करना चाहिए। ऐसा करने से वचनगुप्ति का
SR No.010465
Book TitleSamyaktva Parakram 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1973
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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