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________________ २३४-सम्यक् वपराक्रम (५) सेठ ने अपना योग' असत्य मे प्रवृत्त किया या नहीं ? सेठ मिथ्या बोला लेकिन उस आदमी को सेठ के कथन पर विश्वास नहीं हुआ । उसने मन मे यही सोचा होगा- यह सेठ भूठ बोलता है । यह कैसे माना जा सकता है कि उसके पास दस रुपया भी नही है ! मेठ तो यह सोचता है कि मेरे तिजोरी मे रुपया है या नहीं, यह कौन देखता है ? मगर वह यह नही सोचता कि दूसरा कोई देखे या न देखे, मेरा मन तो जानता है कि तिजोरी मे रुपया है, फिर भी मैं मिथ्या बोला और रुपया न देने के लिए कपट किया। इस प्रकार योग को असत्य मे प्रवृत्त करना योग असत्य है। अगर सेठ उस प्रादमी से यह कह देता कि मेरे पास रुपया तो है पर इस समय मैं तुम्हे रुपया नही दे सकता । ऐसा कहने से सत्य की रक्षा होती। ऐसे सत्य में योग को प्रवृत्त करना योगसत्य है । इसी प्रकार सेठ यदि यह कहता कि मैं दस रुपया तो नही देता पाच दे सकता है, तो यह भी सत्ययोग ही कहलाता । हा, सेठ ने यह कहा होता कि मेरे पास दस रुपया तो नही हैं, पाच ही है । तुम पाच रुपया ले जा सकते हो, यह कथन भी एक प्रकार से असत्य है; पर इसे मिश्र कहा जा सकता है । क्योकि इस कथन मे सत्य असत्य का मिश्रण है । ऐसे मिश्र मे योग को प्रवृत्त करना मिश्रयोग कहलाता है ।। चौथा व्यवहारयोग है । बस्तु न होने पर भी विकल्प से वस्तु मानना अथवा एक वस्तु मे दूसरी वस्तु का आरोप करके कथन करना विकल्प कहलाता है। जैसे- खाट गोर करती है । वास्तव मे खाट शोर नहीं करती वरन् खाट पर वैठे आदमी शोर मचाते हैं। कोई कहता है-- गाव भाग
SR No.010465
Book TitleSamyaktva Parakram 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1973
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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