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________________ छत्तीसवां बोल - १५ और आहार आदि का त्याग सफल होता तो कुटुम्बक्लेश के कारण घर का त्याग कर देने वाले लोग भी सभोग के त्यागी कहलाते । इसी प्रकार बहुत से लोगो के पास किसी प्रकार की उपधि नही होती तो क्या वे उपधि के त्यागी माने जा सकते हैं ? क्या उन्हे साधुओ की श्रेणी मे रखकर वदन नम-कार किया जा सकता है ? नही | पशु निरुपधि होने पर भी उपधि के त्यागी नही कहलाते हैं, क्योकि उन्होने ज्ञानपूर्वक उपधि का त्याग नही किया है । इसी प्रकार दुष्काल के समय बहुत से लोग अन्न के प्रभाव मे मर जाते हैं । क्या उन्हें आहार का त्यागी कहा जा सकता है ? नही । क्योकि उनके पास आहार नही है और उन्हे अनिच्छापूर्वक आहार का त्याग करना पडता है । अगर उन्हे आहार उपलब्ध होता तो वे स्वेच्छापूर्वक उसका त्याग करने के लिए तैयार नही थे । कहने का आशय यह है कि सभोग, उपधि और आहार आदि का त्याग कषाय का त्याग करने के लिए ही किया जाता है । कषाय के त्यागी बने विना सभोग, उपधि और बाहार आदि का त्याग सफल नही हो सकता । कषाय का त्याग करने से जीवात्मा को क्या लाभ होता है ? इसे प्रश्न के उत्तर में भगवान् ने फर्माया है कि कषाय का त्याग करने से सभोग, उपधि और आहार का त्याग सफल होता है तथा जीवन मे वीतरागभावना उत्पन्न होती है । ܐ कषाय के त्याग से किस प्रकार वीतरागभावना उत्पन्न होती है, इस विषय पर विचार करने से पहले यह विचार कर लेना आवश्यक है कि कषाय क्या है और किसलिए
SR No.010465
Book TitleSamyaktva Parakram 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1973
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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