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________________ पचासवां बोल-२१६ कह रहे हैं कि आत्मा और शरीर भिन्न-भिन्न नही हैं किन्तु दूध में घी की तरह शरीर मे ही जीवनशक्ति है । सचाई यह है कि आत्मा और शरीर तलवार तथा म्यान की तरह जुदा-जुदा हैं । तलवार और म्यान अलग-अलग हैं फिर भी तलवार म्यान मे रहती है । इसी प्रकार आत्मा और शरीर भिन्न-भिन्न हैं पर आत्मा शरीर मे रहता है । आत्मा' अमूर्त तथा अविनाशी है । शरीर, मूर्त और विनश्वर है । आत्मा अजर-अमर और शरीर शीण होने वाला है । । प्रश्न हो सकता है कि अगर आत्मा ' अमूर्त और अविनाशी हैं तो मूर्त और विनश्वर शरीर के साथ उसका सम्बन्ध किस प्रकार हुआ? इस प्रश्न का उत्तर यह है कि मिथ्यात्व आदि कारणो से ही आत्मा जन्म: धारणं करता है.और मरता है । आत्मा का जैसा अध्यवसाय होता है, वैसा ही उसका जन्म-मरण होता है । । । 'कुछ लोग कहते हैं कि परमात्मा ही आत्मा को उत्पन्न करता और मारता है, परन्तु गम्भीर विचार करने पर यह कथन किसी भी प्रकार ठीक और युक्तिसगतं नहीं जान पडता। इस सबध मे गीता में भी स्पष्ट कहा है: न कर्तृत्वं न कर्माणि 'लोकस्य सृजति प्रभुः ।। 'न कर्मफलसंयोगं स्वभावस्तु ' प्रवर्तते । का :- अर्थातु - परमात्मा कर्ता -नही-है, कर्म कराता नही है। लोक का सर्जन करता नही है और न किसी को दण्ड ही देता है । यह सब स्वभाव से ही होता है । जैसे मुह मे मिर्च डालने से चरपराहट लगती है और शक्कर डालने से मिठास मालूम होती है, उसी प्रकार कर्म का फल भी
SR No.010465
Book TitleSamyaktva Parakram 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1973
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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