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________________ पचासवां बोल-२०६ आत्मा शुद्ध है तो समस्त वस्तुये शुद्ध स्वरूप मे दिखाई देंगी । आत्मा अगर अशुद्ध हुआ तो किसी भी वस्तु का वास्तविक स्वरूप नही देखा जा सकता । कूटशाल्मली वृक्ष, वैतरणी नदो अथवा कामधेनु गाय या नन्दन वन अर्थात् समुच्चय रूप मे तमाम सुख और दुःख अथवा स्वर्ग या नरक, अपना आत्मा ही है। यह तथ्य भलीभाति समझने के कारण ही ज्ञानीजन सुख के समय फूल कर कुप्पा नहीं हो जाते और दुःख के समय घबरा नही जाते वे समभाव ही रखते हैं । ज्ञानीजनो का कथन है कि जब नरक या कूटशाल्मली वृक्ष के दु ख अपनी आत्मा मे से ही उत्पन्न होते हैं तो फिर नरक या शाल्मली वृक्ष को खराव क्यो कहा जाये ? अगर हम अपनो आत्मा को जीत लें तो यह दुख हमारे पास ही नही फटक सकते । एक आत्मा को भलोभाति जीत लेने से समस्त दुख जीते जा सकते हैं। प्रात्मा को न जीतने की हालत मे दुखो का टूट पडना स्वाभाविक है । दुख दूर करने के लिए प्रात्मा को जीतना आवश्यक है। सूर्य और दापक--दोनो प्रकाश देते हैं । सूर्य स्वतत्र रूप से प्रकाश देता है परन्तु दीपक तेल देने पर ही प्रकाश दे सकता है । दीपक मे तेल न दिया जाये तो वह बुझ जाएगा । ज्ञानीजनो का कथन है कि हमारा प्रा मा सूर्य से भी अधिक स्वतन्त्र है । आत्मा जब तक परतन्त्र है तभी तक वह दु.खो है । अगर वह परतन्त्र न बने तो उसे किसी भी प्रकार का दुख उत्पन्न नहीं हो सकता । गौतम स्वामी का कथन सुनकर केशी स्वामी ने कहाआपने मेरे प्रश्नो का जो उत्तर दिया है वह समीचीन है । मेरे कहने का आशय भी यही था । आप वास्तव मे
SR No.010465
Book TitleSamyaktva Parakram 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1973
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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