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________________ उनचासवां बोल-१६६ जीवदया का अनुपम आदर्श उपस्थित कर सकते ? इस प्रकार सच्ची जीवदया वे ही कर सकते हैं जिनमे सच्चा मार्दव गुण होता है अर्थात् कोमलता या विनम्रता होती है । जिनमें कोमलता या विनम्रता नही होती वे प्रथम तो किसी प्राणी के प्रति दयाभाव प्रदर्शित ही नही कर सकते, कदाचित प्रदर्शित करें भी तो वह दया बनावटी और दिखावे के लिए ही होती है । सच्ची भावदया तो वही व्यक्ति कर सकता है जिसमे सच्ची मृदुता होती है । अतएव सच्ची दया करने के लिये तुम भी अहकार को जीतो और यह मानो कि सब जोव मेरे ही सरीखे हैं । दूसरो का हित करने से अपना हित होता है और दूसरो का अहित करने से अपना अहित होता है । तुम्हारे अन्त करण में ऐसी भावना दृढ होगी तो तुम भी सच्ची दया कर सकोगे । अहकार या अभिमान को जीत कर अपने आत्मा को सरल तथा नम्र बनाओगे तो तुम अपना कल्याण करने के साथ दूसरो का भी कल्याण कर सकोगे । आत्मा को सरल और नम्र बनाने से स्व-पर का कल्याण होता है।
SR No.010465
Book TitleSamyaktva Parakram 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1973
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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