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________________ १९४-सम्यक्त्वपराक्रम (५) उत्तर- मद्दवयाए अणुस्सियत्तं जणयइ, अणुस्सियत्तेण जीवे मिउमद्दवसपन्ने अट्ठमयट्ठाणाई निट्ठावेद ॥४६॥ शब्दार्थ प्रश्न -- भगवन् । मृदुता (निरभिमानता-नम्रता) से जीव को क्या लाभ होता है ? उत्तर- मृदुता से जीवात्मा अभिमानरहित होता है और निरभिमान बनने के कारण कोमल मार्दव प्राप्त करके आठ प्रकार के मदस्थानो का परित्याग करता है । व्याख्यान मृदुता अर्थात विनम्रता समस्त गुणों की आधारभूमिका है। बिना आधार के आधेय टिक नही सकता। जिस प्रकार वक्ष आदि के लिए पृथ्वी अाधारभूत है, अर्थात् पृथ्वी के सहारे के बिना वृक्ष आदि स्थिर नहीं रह सकते, उसी प्रकार समस्त गुणो की आधारभूमिका मृद्धता अर्थात् विनयशीलता है । विनयशीलता के अभाव मे कोई भी गुण नही रह सकता। इसी कारण आर्जव के साथ मार्दव गुण भी प्राप्त करना चाहिए । मृदुता गुण को धारण करना लाभदायक तो है ही, परन्तु मृदुता के धारण करने से जीवात्मा को क्या लाभ होता है, इस बात पर विचार करना आवश्यक है। द्रव्य और भाव से नम्रता वारण करना मार्दव अर्थात् विनयशीलता-निरभिमानता है । शरीर आदि द्रव्य में भी नम्रता होनी चाहिए और भाव मे भी नम्रता होनी चाहिये। जहा नमनभाव है वही सब गुण टिक सकते हैं । जिसमें
SR No.010465
Book TitleSamyaktva Parakram 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1973
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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