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________________ छयालीसवां बोल-१५७ में परिणत किया है। अतएव तुम्हारा थोडा-सा भी ज्ञान सक्रिय होने के कारण सच्चा ज्ञान है । आज जगत् में ऐसे सक्रिय ज्ञान की ही आवश्यकता है । तोता-रटत ज्ञान से इष्टसिद्धि नही हो सकती । इष्टसिद्धि तो सक्रिय ज्ञान से ही हो सकती है अतएव सक्रिय ज्ञान ही वास्तविक ज्ञान है । . परोक्षक युधिष्ठिर को सहिष्णुता तथा सत्यवादिता से अत्यन्त प्रसन्न होकर कहने लगा--हे युधिष्ठिर | तू क्रोध-विजेता और सत्यभाषी है, अतएव ससार का भी जीत सकेगा । युधिष्ठिर इस प्रकार सहनशील तथा सत्यभाषी होने के कारण ही आगे चल कर धर्मराज के रूप में प्रसिद्ध हुए। __शास्त्रकारो ने कोध, मान, माया और लोभ को ससार का मूल प्रकट किया है । इन. चार कषायो से ही पापो की वृद्धि होती है । शास्त्र में कहा भी है : कोहं माणं च मायं च लोभं च पाववडढणं । वमे चत्तारि दोसे उ, इच्छंतो हियमप्पणो । -दश०८, ३७. . अर्थात्--कोष, मान, माया तथा लोभ यह चार दोष पापवर्धक तथा ससारवर्धक हैं । अतएव प्रात्मा का हित चाहने वाले को इन चार दोषो का सर्वथा त्याग करना चाहिए । क्योकि --- कोहो पोइं पणासेइ, माणो विणयनासणो । ' माया मित्ताणि नासेइ, लोहो सव्वविणासणो । - -दश० ८, ३८ अर्थात्-क्रोध प्रीति का नाश करता है, मान विनय
SR No.010465
Book TitleSamyaktva Parakram 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1973
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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