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________________ छयालीसवां बोल-१५५ Language अर्थात् मृतभाषा कहते हैं । अंग्रेजी भाषा जानने वाले को अच्छी नौकरी मिलेगी, ऐसा कुछ लोग मानते हैं और कुछ लोग उसे सस्कृत भाषा की अपेक्षा अच्छी और समृद्ध भी मानते हैं किन्तुं यह मान्यता भ्रमपूर्ण है । अपनी मातृ भाषा की बेकद्री करना और विदेशी भाषा को कद्र करना भूल है । तुम्हारे हृदय मे अपनी माता का स्थान ऊचा है या दासी का ? अगर तुम्हारे हृदय मे माता के लिए उच्च स्थान है ता मातृ भाषा के लिए भी ऊ चा स्थान होना चाहिए। मातृभाषा माता के स्थान पर है और विदेशी भाषा दासी के स्थान पर । दासी कितनी ही सुरूपवती और सुघड़ क्यों न हो माता का स्थान कदापि नही ले सकती। ' प्राचीन समय मे इस देश मे सस्कृत भाषा प्रचलित थी और इसी भाषा मे ' शिक्षा दी जाती थी। आज को तरह उस समय विदेशी भाषा का महत्व या प्रभुत्व नहीं था । अतएव युधिष्ठिर ने सस्कृत भाषा मे, अपनी पट्टी पर 'कोप मा कुरु' अर्थात् क्रोध मत करो, ऐसा लिख रखा था। . युधिष्ठिर की पाटी पर लिखा हुआ यह वाक्य पढकर परीक्षक ने कहा-~'बस, इतना ही आता है ?' . . . .. युधिष्ठिर-अभी तो इतना भी ठीक तरह नही आता। परीक्षक--(क्रुद्ध होकर) इतना भी अभी याद नही हुआ ? युधिष्ठिर--बाहर से तो इतना लेख याद हो गया है, परन्तु अन्दर से याद नही हुआ । यह सुनकर परीक्षक और अधिक कुपित हो गया, उसने क्रोध में आकर युधिष्ठिर को मारना प्रारम्भ किया । यद्यपि
SR No.010465
Book TitleSamyaktva Parakram 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1973
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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