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________________ १४४-सम्यक्त्वपराक्रम (४) भाषा में उत्तर दिया-क्षमा धारण करने से जीव परिषहाँ को जीत सकता है। भगवान् ने परिपहो की बात कही है। मगर हमें सर्वप्रथम यह जान लेना चाहिए कि परिषहो का अर्थ क्या है? परिषह की व्याख्या करते हुए कहा गया है~परि-समन्तात् सहति इति परिषहः ।' अर्थात् सम्यक् प्रकार से कष्टो को सहन करना परिषह है । अज्ञानपूर्वक तो बहुत से लोग कष्ट सहन करते हैं, परन्तु उसकी गणना परिषह में नहीं की जाती । परिषह मे उन्ही कष्टो की गणना की जाती है जो ज्ञानपूर्वक सहन किये जाते हैं। ज्ञानपूर्वक कष्ट सहन तभी हो सकता है जब क्षमा विद्यमान हो । क्षमा धारण किये बिना सम्यक् प्रकार से कष्ट सहन नही हो सकता । श्री उत्तराध्ययन के द्वितीय अध्याय में परिषह के बाईस भेद बतलाये गये हैं और उनके विषय में सुन्दर विवेचन किया गया है । परिषह के बाईस प्रकार इस तरह हैं।-(१)क्षुधा का परिपह (२) पिपासा (घ्यास) का परिषह (३) शीत का परिषह (४) ताप का परिपह (५) डास-मच्छर का परिषह (६) अस्त्र का परिपह (७) अरति (अप्रीति) का परिषह (८) स्त्री का परिषह (६) चर्या-गमन का परिषह (१०) बैठक का परिषह (११) आक्रोश-वचन का परिषह (१२) वध का परिषह (१३) शैया का परिषह (१४) याचना का परिषद (१५) अलाभ का परिषह (१६) रोम का परिषह (१७) तृणस्पर्श का परिषह -(१८) जलमैल का परिषह (१६) सत्कार-पुरस्कार अर्थात् मानापमान का परिषह (२०) प्रज्ञा-बुद्धि का परिषह (२१) अज्ञान का परिषह (२२) अदर्शन का परिषह ।
SR No.010465
Book TitleSamyaktva Parakram 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1973
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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