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________________ ६-सम्यक्त्व पराक्रम (४) यावज्जीवन अनशन । यावज्जीवन अनशन तो कोई विरला ही करता है, परन्तु इत्वरिक अनशन का अभ्यासी पुरुष यावज्जीवन अनशन करने का साहस कर लेता है । इत्वरिक अनशन करना एक प्रकार से यावज्जीवन अनशन करने का अभ्यास करना ही है । कुछ लोगो का कहना है- 'जन आहार का त्याग करते हैं, यह भी एक प्रकार की हिंसा है। आहार का त्याग करना या मरना दोनो वाते समान हैं । आहार के बिना शरीर टिक नही साता । कडकडाती भूख लगने पर अगर भोजन नहीं खाया जाता तो उस समय गरीर का रक्त मास खाया जाता है । इस प्रकार आहार का त्याग करना आत्महत्या करने के समान है। गीता के एक श्लोक का अर्थ करते हुए भी कुछ लोग इसी प्रकार की मान्यता प्रकट करते हैं। मगर ऐसा कहने वाले लोग भूल करते है । आहार-त्याग करना अथवा उपवास करना जीवन की रक्षा के लिए आवश्यक है। अनेक लोग इस समय भी उपवास का महत्व समझ कर उसे प्राकृतिक औपध के रूप मे स्वीकार करते हैं । उपवास करने से शरीर का रक्त-मास नहीं खाया जाता । उपवास करने से शरीर कृश अवश्य होता है, मगर उससे शरीर को किसी प्रकार की हानि नही पहुचती । गरीर कृश होने से शारीरिक शक्ति का ह्रास नही हो जाता । आजकले वैज्ञानिक प्रयोग द्वारा दूध सुखा लिया जाता है और उसका ठोस पदार्थ बना लिया जाता है । उसे पानी मे मिलाने से फिर वह दूध बन जाता है । जैसे उस दूध मे की शक्ति नष्ट नही होती उसी प्रकार उपवास करने से शरीर के कृश हो
SR No.010465
Book TitleSamyaktva Parakram 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1973
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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