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________________ १४०-सम्यक्त्वपराक्रम (४) उत्तर-क्षमा द्वारा जीव परिपहो पर विजय प्राप्त करता है। व्याख्यान क्षान्ति का अर्थ है-क्षमा । क्षमा धारण करने मे जीव को क्या लाभ होता है, यह प्रश्न गौतम स्वामी ने पूछा है । इस प्रश्न के उत्तर मे भगवान् ने फरमाया है कि परिषहों पर विजय पाना क्षमा कहलाता है । क्षमा धारण करना और परिपहो को जीतना-इन दोनो का वाच्यार्थ भिन्न-भिन्न होने पर भी दोनो का लक्ष्यार्थ एक ही है । क्षमा अर्थात् समतापूर्वक परिपहो को जीतना और परिपहो को समभाव से सहन करना अर्थात् क्षमा रखना। इस प्रकार क्षमा और परिपह जय का अविनाभाव सबध है । यह तो क्षमा के सामान्य अर्थ पर विचार किया गया । परन्तु यहा विचारणीय यह है कि क्षमा को साध के दस प्रकार के धर्मों मे प्रथम स्थान किस कारण दिया गया है? भगवान् ने क्षमा को इतना महत्व क्यो दिया है ? राग और द्वेष जीत लिये गये हैं या नहीं, इसकी जाच करने की कसौटी क्षमा है । जव मनुष्य राग-द्वेप को जीत लेता है तभी वह साधुपन पालने योग्य होता है । रागद्वेष को जीते विना साधुता को प्रवृत्ति तो जीवात्मा ने चिरकाल तक की होगी, परन्तु यह प्रवृत्ति लाभदायक तभो हो सकती है, जब राग और द्वेप पर विजय प्राप्त कर ली जाये। क्षमा के द्वारा ही राग द्वेष जीते जा सकते हैं । सब गुणों मे क्षमागुण प्रधान है । जव तक राग-द्वेष को जीतकर क्षमा गुण न धारण किया जाये तब तक दूसरे कोई सद्
SR No.010465
Book TitleSamyaktva Parakram 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1973
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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