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________________ ६२-सम्यक्त्वपराक्रम (३) सयम से जीव मे अनाहतपन आता है । साधारणतया संयम का फल आस्रवरहित होना माना जाता है पर यह साक्षात् अर्थ नही है । सयम के साक्षात् अथ के विषय मे टीकाकार कहते हैं सयम से जीव ऐसा फल प्राप्त करता है, जिसमे कर्म की विद्यमानता ही नहीं रहती। सयम से आश्रवरहित अवस्था प्राप्त होती है और यह अवस्था प्राप्त होने के बाद जीव निष्व म दशा प्राप्त कर लेता है । सूत्रसिद्धान्त बीज रूप में ही कोई बात कहते हैं । अत. उसका विस्तार करके विचार करना आवश्यक है। सयम का फल निष्कर्म अवस्था प्राप्त करना कहा गया है । इस पर प्रश्न उपस्थित होता है कि निष्कर्म अवस्था तो तप द्वारा प्राप्त हाती है। अगर सयम से ही कर्मरहित अवस्था प्राप्त होती हो तो तप के विषय मे जुदा प्रश्न क्यों किया गया है ? इस प्रश्न का उत्तर यह है कि वर्णन करने मे एक वस्तु ही एक वार आती है । तप और सयम सवन्धी प्रश्न अलग-अलग हैं परन्तु दोनो का अर्थ तो एक ही है । चारित्र का अर्थ करते हुए बतलाया गया है कि चय का अर्थ 'कर्मसचय' होता है और 'रित्र' का अर्थ रिक्त करना है । अर्थात कर्मसचय को रिक्त (खाली) करना चारित्र है। चारित्र कहो या सयम कहो, एक ही बात है। अत चारित्र का फल ही सयम का फल है । चारित्र का फल कर्मरहित अवस्था प्राप्त करना है और सयम का भी यही फल है । कोई कर्म पुराना होता है और कोई अनागत-आगे आने वाला होता है। कोई ऋण पुराना होता है और कोई आगे किया जाने वाला होता है। पुराने कर्मों की तो सीमा
SR No.010464
Book TitleSamyaktva Parakram 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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