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________________ ३८-सम्यक्त्वपराक्रम (३) क्रियात्मक ज्ञान ही सच्चा ज्ञान है । व्यवहार में भी क्रियात्मक ज्ञान की आवश्यकता है और आध्यात्म मे भी। जब व्यवहार में भी सक्रिय ज्ञान उपयोगी होता है तो क्या धर्म के मार्ग में सक्रिय ज्ञान की आवश्यकता नहीं होगो ? अतएव धर्ममार्ग मे भी सक्रिय ज्ञान होना आवश्यक है । आज धार्मिक क्षेत्र मे ज्ञान की कमी नजर आती है। तुम्हारे बालक श्रावक-कुल मे जन्मे हैं और उन्होने व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त किया है फिर भी अगर उन्होने धार्मिक ज्ञान का उपार्जन न किया अर्थात् जीव-अजोब का भेद भी न जाना तो ज्ञान की कितनी त्रुटि समझनी चाहिए ? तुम प्रयत्न करो तो अपने बालको के व्यावहारिक ज्ञान को ही आध्यात्मिक ज्ञान मे परिणत कर सकते हो । आत्मा का कल्याण केवल व्यावहारिक ज्ञान से नही हो सकता । आत्मकल्याण के लिए आध्यात्मिक ज्ञान की आवश्यकता है । अतएव तुम अपने बालको को अगर शान्ति देना चाहते हो तो उन्हे आध्यात्मिक ज्ञान देना चाहिए । यह बात दूसरी है कि आज पहले के समान आध्यात्मिक ज्ञान न दिया जा सकता हो या उसकी आवश्यकता न समझी जाती हो, मगर समय के अनुसार आध्यात्मिक ज्ञान तो देना ही चाहिए । आत्मा अपना कल्याण आध्यात्मिक ज्ञान से ही कर सकता है । आध्यात्मिक ज्ञान से ही आत्मा कल्याण साधता है, साधा है और साधेगा । अत सक्रिय ज्ञान की आराधना करो। इसी में कल्याण है । ज्ञानपचमी की आराधना शास्त्र को धूप देने से नही होती । ज्ञानोपार्जन करना और उपाजित ज्ञान को सक्रिय रूप देना ही ज्ञानपचमी की सच्ची
SR No.010464
Book TitleSamyaktva Parakram 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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