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________________ तेईसवां बोल-३१ के बाद इसी कारण रखा गया है। जिसमें वाचना, पृच्छना, परावर्त्तना और अनुप्रेक्षा- यह चार बातें हो वही धर्मकथा कर सकता है । इस धर्मकथा के विषय में भगवान् से यह प्रश्न किया गया है.--- मूलपाठ प्रश्न--धम्मकहाए णं भते ! जीवे कि जणयइ ? उत्तर- घम्मकहाए णं णिज्जर जणयइ, धम्मकहाए णं पवयण पभावेइ, पवयणपभावेण जीवे प्रागमेसस्स भइत्ताए कम्म निबधइ ? शब्दार्थ प्रश्न- भगवन् । धर्मकथा करने से जीव को क्या लाभ होता है? उत्तर धर्मकथा से निर्जरा होती है और जिन भगवान् के प्रवचन की प्रभावना होती है। प्रवचन-प्रभाव से जीव भविष्यकाल मे शुभ कर्म का बन्ध करता है । व्याख्यान धर्मकथा करने से जीव को क्या लाभ होता है ? इस प्रश्न के उत्तर में भगवान ने पहली बात तो यह कही है कि धर्मकथा करने वाले के कर्मों की निर्जरा होती है । धर्मकथा करने वाला किसी भी प्रकार के प्रलोभन मे न पडकर यही समझे कि धर्मकथा के द्वारा मैं अपने कर्मों की निर्जरा कर रहा है।
SR No.010464
Book TitleSamyaktva Parakram 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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