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________________ बाईसवां बोल-२१ तुझे समय नही मिनता तो न सही । कोई हानि नही है। क्योकि इस कार्य के लिए किसी खास अलग समय को आवश्यकता नहीं है । परमात्मा का भजन किस प्रकार करना चाहिए, यह सीखने के लिए तो समय की आवश्यरहती है, लेकिन परमात्मा का स्मरण करने के लिए किसी खास समय की अनिवाय आवश्यकता नही है । इसका अभ्याम तो श्वासोच्छ्वास की तरह हो जाता है । जब परमात्मा के स्मरण का अभ्यास श्वामोछ्वास लेने और छोड़ने के अभ्यास की तरह स्वाभाविक बन जाये तो समझना चाहिए कि परमात्मा का भजन स्वाभाविक रूप से शास्त्र में कितनेक ऐसे उपाय बतलाये गये है कि परमात्मा का नाम न लेने पर भी उसका भजन किया जा सकता है । अजपाभ्यास हो जाने से परमात्मा का नाम लेने की भी आवश्यकता नही रहती । परमात्मा का नाम न लेने पर भी परमात्मा का स्मरण करने के अनेक उपायो मे से एक उपाय है- प्रामाणिकतापूर्वक अपने कर्तव्य का पालन करना । प्रामाणिकतापूर्वक कर्तव्य का पालन करने से परमात्मा का नाम न लेने पर भी परमात्मा का स्मरण हो जाता है मान लो, तुम किसी के नौकर हो । तुम्हारा स्वामी सदैव तुम्हारे साथ नहीं रहता । फिर भी तुम्हे यही मानना चाहिए कि तुम्हारा स्वामी तुम्हारे सामने ही है, अत प्रामाणिकता के साथ काम करना चाहिए । स्वामी भले ही मेरा काम न देखता हो, मगर परमात्मा तो मेरा काम देखता ही है । अतएव मुझे अपने काम में अप्रामाणि
SR No.010464
Book TitleSamyaktva Parakram 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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