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________________ चौतीसवाँ बोल-२४६ अतएव तुम भी त्याग का आदर्श दृष्टि के समक्ष रखकर उपधिं का त्याग करो और विपत्ति को सम्पत्ति समझो विपत्ति के बादल चढ आवे तो ऐसी अवस्था मे घबराहट त्याग कर परमात्मा का स्मरण करो । इससे विपत्ति भी सम्पत्ति के रूप में परिणत हो जायेगी । । ___ जादूगर धूल मे से रुपया पैदा करके उपस्थित जनता को आश्चर्यचकित कर डालता है। यह हाथ की चालाकी है । अगर धूल से रुपया बन सकता होता तो जादूगर क्यों पैसे की भीख मागता ? वह भीख मांगता है, इसी से स्पष्ट जान पडता है कि यह हाथ की चालाकी है । परन्तु परमात्मा के नामस्मरण के जादू से सचमुच ही विपत्ति, सम्पत्ति बन जाती है । किसी ने कहा है ताम्बे से सोना बने, वह रसाण मत झीख । नर से नारायण बने, वही रसायन सीखं ।। आजकल ताम्बे से सोना बनाने वाले अनेक ठग देखेसने जाते हैं । इन ठगो के चमत्कार से बहुतेरे पढ़े-लिखे लोग भी प्रभावित हो जाते हैं । सुना है, एक बडा जागीरक्षार भी एक ठग के चमत्कार के चक्कर में फंस गया था। ठग ने जागीरदार से कहा तुम्हारे घर मे जितना सोना हो. वह सब मेरे पाम लाओ तो मैं उसका दुगुना बना गा। इस प्रकार प्रलोमन मे फंसाकर ठग जागीरदार को जगल मे ले गया। ठग ने वहा जागीरदार से कहा- अब नम्हारे पास जो अच्छी से अच्छी घोडी हो, ले आओ। इस सोने के चारो ओर घोडी की प्रदक्षिणा कराना आवश्यक है। जागीरदार ने घोडी मगवाई । ठग घोडी पर सवार मन में फंसाकका दुगुना बनी जगल मे ले गया |
SR No.010464
Book TitleSamyaktva Parakram 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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