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________________ चौतीसवां बोल-२४३ करो कि तुम आम जैसे बनना चाहते हो या एरण्ड सरीखे बनना चाहते हो ? आम सरीखा बनने के लिए तुम्हे नम्रता सीखना चाहिए । वास्तव मे संसार में वही पुरुष यशस्वी बनता है, जिसमे अहकार नहीं होता और नम्रता होती है। जिसमे अहकार भरा है वह नष्टप्राय हो जाता है। अहकारी व्यक्ति का अहकार ही उसके नाश का कारण बन जाता है। __ रावण का नाश अहकार के कारण ही हुआ था। वह अच्छी तरह जानता था कि सीता का हरण करके मैंने अच्छा काम नहीं किया । मगर उसे अभिमान था कि मैं लका का स्वामी हू, अब उमे वापिस कैसे लौटाऊँ। मदोदरी ने भो रावण को बहुत समझाया था- . तासु नारि निज सचिव बुलाई, पहुंचावहु जो चहहु भलाई । अर्थात- अगर तुम अपना और राज्य का भला चाहते हो तो आज ही अपने मन्त्री को बुलाकर सीता को वापस भेज दो । मन्दोदरी ने इस प्रकार रावण को समझाया । रावण भी यह समझ गया था कि सीता को वापस न करने से हानि ही होगी, मगर उसमे अहकार था । वह सोचता था कि मैं जिस सोता को ले आया हूं उसे वापस सौप देना मेरी कायरता कहलाएगी । लोग मुझे कायर कहेगे। इसी अहकार के कारण वह राम के पास सीता न भेज सका । इस अहंकार का नतीजा यह हुआ कि रावण का नाश हो गया । रावण तो अपने बल और वैभव आदि के कारण अहकार करता था, परन्तु तुम किस बिरते पर अहकार कर
SR No.010464
Book TitleSamyaktva Parakram 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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