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________________ २३६-सम्यक्त्वपराक्रम (३) नही पहना । अव जगल मे चोर मिल जाये तो किसे भय लगेगा ? अगर सोने का हार पहने वाले के हृदय मे हार के प्रति ममत्व न होगा और निर्भय होकर वह विचार करेगा कि सोना क्या चीज है | चोर ले जाये तो भले ही ले जाय, तो उसे भय होने का कोई कारण नही। अगर हार के प्रति उसे ममता होगी तो चोर का भय लगे बिना नही रहेगा। सोने के प्रति ममत्व होने के कारण कभी-कभी सोने के साथ जान जाने का भी भय हो जाता है। जिस प्रकार सोने के प्रति ममता न होने के कारण मनुष्य निर्भय बन जाता है, उसी प्रकार उपधि का त्याग करने से जीवात्मा क्लेशरहित हो जाता है । वाह्य उपधि का त्याग करने के बाद कर्म की और शरीर की जो उपधि शेष रह जाती है, उसके लिए भगवान् ने कहा-बाह्य उपधि की भाति कर्म और शरीर की उपधि का भी त्याग करना चाहिए । उपवि का त्याग करने से ज्ञ न, ध्यान तया स्वाध्याय भी भलीभाति हो सकता है । जब तक उपवि होती है तब तक उपकरणो की सार-सभाल भी रखनी पडती है और उनके उठाने-धरने की भी चिन्ता करनी पड़ती है। इसी प्रकार जब तक शरीर की उपधि बनी है तब तक भोजन-पानी लेने के लिए जाने मे भी समय का भोग देना ही पड़ता है । अतएव उपधि का जितना त्याग हो सके उतना ही अच्छा है । लेकिन अपनी शक्ति देखकर ही उपधि का त्याग करना उचित है । उपवि के त्याग की शक्ति न हो तो उपधि के कारण अभिमान नही करना चाहिए वरन् ऐसी उच्च भावना भानी चाहिए कि मैं इस उपधि का त्याग करने के लिए कब समर्थ हो सकूगा !
SR No.010464
Book TitleSamyaktva Parakram 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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