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________________ २३४–सम्यक्त्वपराक्रम ( ३ ) , स्वीकार करके उपधि रखना साधुओ के लिए अनुचित नहीं है । शहरो मे कितने ही भिखारी भीख मागने के लिए पैर पर कपडा, बाघ कर ढोग करते हैं ऐसा ढोग करना दूसरी वात है । ऐसा ढोग करके उप रखने वाले की सभी ने निंदा की है । परन्तु फोडा होने पर जैसे पट्टी वाघना अनुचित नही है, उसी प्रकार सयम का पोषण करने वाली उपधि को, जब तक कर्मों का नाश न हो जाये तब तक या उपधि त्याग करने की शक्ति ग्राने तक रखना अनुचित नही है । हाँ, उपधि रखकर अभिमान करना या आनन्द मानना उसी प्रकार मूखता है, जिम प्रकार फोडा न होने पर भी पैर मे पट्टो बाँधना मूर्खता है । भगवान् कहते है, जिस वस्तु की जितगो अनिवार्य आवश्यकता है उतनी ही उपाधि रखनी चाहिए, परन्तु जिसकी आवश्यकता नही है और जिसका त्याग करने को शक्ति है, उस वस्तु को अपनाये रखना भी मूर्खता है । फिर भी जब तक उपधि रखनी पड रही है तब तक किसी प्रकार का अभिमान न करना चाहिए । ऐसा न हो कि सुन्दर वस्त्र और सुन्दर अन्य वस्तुएँ रखे और फिर उन पर ममत्व एव अभिमान करे । फोडे पर जो पट्टी वाघी जाती है, वह आघात आदि से बचने के लिए ही है, सुन्दरता बढाने के लिए नही । इसी प्रकार साबु जो वस्त्र रखते हैं सो लज्जा की रक्षा के लिए ही हैं तथा शरीर को शीत और ताप के आघात से बचाने के लिए हैं, जिन्हे सहन करने की शक्ति साधु में अभी तक नहीं आई है । अतएव साबुओ को वस्त्र आदि रखने मे शृङ्गार की भावना से बचना ही चाहिए । शृङ्गार की भावना होने पर वस्त्र आदि उपाधि £ सयम में बाघक सिद्ध होती है ।
SR No.010464
Book TitleSamyaktva Parakram 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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