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________________ चौतीसवां बोल - २२१ श्रावक अपराधी को मारने का त्यागी नही होता । लोग कहते हैं कि अहिंसा का पालन करने से कायरता प्राती है । परन्तु ऐसा कहना भूल है । जान पडता है, यह भ्रम - पूर्ण मान्यता कुछ जैन नामधारी लोगो के कायरतापूर्ण व्यवहार से ही प्रचलित हो गई है । जैनधर्म गृहस्थ के लिए यह नही कहता कि गृहस्थ अपराधी को मारने का भी त्याग करे । गृहस्थ के लिए जैनधर्म ने अपराधी को मारना निषिद्ध नही ठहराया है और न अपराधी को दण्ड देने वाले को पापी ही कहा है । यह बात स्पष्ट करने के लिए यहा एक उदाहरण दिया जाता है : -- · जिस समय भारतवर्ष मे चारो ओर अराजकता फैलती जा रही थी, और शक्तिशाली लोग अशक्तो को सता रहे थे, उस समय नो लिच्छवी और नौ मल्ली नामक अठारह राजाओं ने मिलकर एक गण - सघ की स्थापना की थी। इस गणसघ का उद्देश्य सबलो द्वारा पीडित निर्बलो की रक्षा करना था । गणसघ के अठारह गणराजाओ का गणनायक ( President ) चेटक राजा था । राजा चेटक या चेडा भगवान् महावीर का पूर्ण भक्त था आज तुम लोग ढीली घोती पहनने वाले बनिया बन रहे हो, परन्तु जैनधर्म क्षत्रियो का धर्म है । तुम्हे धर्म ने बनिया नही बनाया है । तुम महाजन बने थे । व्यापार मे लग जाने के कारण आज तुममे गुलामी का भाव आ गया है और तुम बनिया बन गये हो । 'स्वार्थ की अधिकता के कारण तुम्हारे हृदय मे कायरता और गुलामी घुस गई है । वास्तव मे तुम वणिक नही, महाजन हो । 1 सशक्त लोगो से निर्बलों की रक्षा करने के लिए ही
SR No.010464
Book TitleSamyaktva Parakram 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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