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________________ २१४-सम्यक्त्वपराक्रम (३) दुविहे धम्मे पण्णते, तजहा-पागारधम्म अणगारधम्म य । अर्थात् धर्म दो प्रकार के हैं - गृहस्थधर्म और साधुधर्म । साधुधर्म का आधार गृहस्थ का धर्म ही है । श्री जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र में कहा है कि जब धर्म का नाश होगा तो सर्वप्रथम साधुधर्म का नाश होगा और फिर गृहस्थधर्म का नाश होगा। साधुधम जीवित रहे और गृहस्थधर्म नाट हो जाये, ऐसा कभी हो ही नहीं सकता, क्योकि गृहस्थधर्म, साधुधर्म का आधार है और यदि गृहस्थ लोग अपने धर्म का सम्यक् प्रकार पालन न करें तो ऐसी दशा मे साघधर्म का भी सम्यक् प्रकार से पालन नही हो सकता । अतएव गृहस्थो को अपने धर्म का यथोचित पालन करना चाहिए । धर्म किसी व्यक्ति को, फिर वह साधु हो या गृहस्थ हो, किसी प्रकार के बन्धन मे बद्ध नहीं करता। धर्म तो अविवेक को दूर करता है। धर्म का कथन यह है कि जो कुछ करो, विवेकपूर्वक ही करो । गृहस्थो को विवेक समझाने के लिए ही शास्त्र मे पाच अणुक्त, तीन गुणव्रत और च र शिक्षावत बतलाये गये है। इन बारह व्रतो को ही आगारधर्म कहते हैं । पहले अहिंसाव्रत मे श्रावक को हिंसा का त्याग करना पडता है । गृहस्थ- श्रावक हिंसा का सर्वथा त्याग नही कर सकता, अतएव उसे स्थूल हिंसा का त्याग करने का विधान किया गया है । स्थूल हिंसा किसे कहना चाहिए और सूक्ष्म हिंसा क्या है, इस विषय मे शास्त्र मे अत्यन्त सूक्ष्मतापूर्वक विचार किया गया है । शास्त्र:
SR No.010464
Book TitleSamyaktva Parakram 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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