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________________ १६४-सम्यक्त्वपराक्रम (३) स्वाद के लिए साधु को भोजन करना उचित नहीं है। कहा जा सकता है कि स्वाद के लिए कोई चीज न खाना कैसे सभव हो सकता है ? खट्री या मोठो चीज खाने से खट्टा या मीठा स्वाद आये बिना नहीं रह सकता। इसके उत्तर में कहा जा सकता है, कि, कल्पना करो, तुम्हें वैद्य ने शहद के साथ खाने के लिए कोई दवा दी । तुमने शहद के साथ दवा खाई । शहद तो अपना स्वाद देता हो है, परन्तु तुमने शहद स्वाद के लिए खाया है या दवा के लिए खाया है ? तुमने दवा सेवन करने के लिए ही शहद खाया है । इसी प्रकार साघओ का भोजन करने का मुख्य उद्देश्य शरीर को टिकाए रखना है, स्वाद लेना नही । तुम लोग खाने मे जितना आनन्द मानते हो, उससे अनन्त गुना आनन्द साधुजन सयम मे मानते हैं। यही कारण है कि वे खाने के लिए सयम नही गवाते । उनको दृष्टि मे खाने-पीने की अपेक्षा सयम की कीमत अनेकगुनी अधिक है। साधजन सयम में और चारित्रपालन में सावधान रहते हैं और मुक्ति मे आनन्द मानते हैं । मान लो, तुम्हारे पास एक मूल्यवान हीरा है । तुम्हें विश्वास है कि इस हीरा को कीमत से तुम अपने सब सकट हटा सकते हो । ऐसी दशा मे क्या तुम वह हीरा एक मुट्ठी चनों मे बेच दोगे ? नही । इसी प्रकार जिन मुनियो को यह दृढ विश्वास हो गया है कि सयम समस्त सकटो से छूटकारा दिलाने वाला है और आठ कर्मों को नष्ट कर मुक्ति दिलाने वाला है, वे मुनि क्या खानपान के लिए सयम का परित्याग कर सकते हैं ? कदापि नही ।
SR No.010464
Book TitleSamyaktva Parakram 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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