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________________ १६०-सम्यक्त्वपराक्रम (३) शक्ति होने पर भी मर्यादा का पालन करना आवश्यक है। मर्यादा का पालन न करने से अन्य लोगो को हानि होने की सभावना रहती है । क्योकि जिनमें ऐसी शक्ति नहीं होती वे भी इस प्रकार के उदाहरण की आड मे ऐसा काम करने लगते हैं और अन्त में पतित हो जाते है । सभी पृथ्वी के सहारे टिके हैं। आसन आदि होने पर भी आधार तो पृथ्वी का ही है। परन्तु कोई महात्मा अगर अपने लब्धिबल से पृथ्वी का सहारा लिये बिना ही स्थिर रह सकता हो तो उसे अपवाद कहना चाहिए । मगर इस अपवाद का अनुकरण करने वाले दूसरे लोग भी यदि पृथ्वी का सहारा लिए बिना स्थिर रहने का प्रयत्न करे तो वे नीचे गिरा जाएंगे । इसी प्रकार कोई सयमी मनुष्य, स्त्री के साथ रहता हुआ भी सयम का पालन करता है, मगर यह अपवाद है और वह सभी के लिए उत्सर्ग मार्ग नही बन सकता। अतएव जहाँ स्त्री, पशु या नपुसक का वास हो, वहाँ नही रहने का नियम सभी के लिए बना दिया गया है। शास्त्र मे जो उपदेश दिया गया है वह जगद्गुरु का दिया हुआ उपदेश है । जगद्गुरु किसी व्यक्ति-विशेष को ही लक्ष्य करके उपदेश नही देते, वरन् जनसमाज को दष्टि मे रखकर उपदेश देते हैं । इसलिए यह कहा गया है कि साधु को विविक्त शयनासन का सेवन करना चाहिए । यह तो हुई विविक्त शयनासन के सेवन की बात । परन्तु विविक्त के सेवन से लाभ क्या होता है ? इस विषय में कहा गया है कि विविक्त शयनासन के सेवन से चारित्र की गुप्ति रक्षा होती है।
SR No.010464
Book TitleSamyaktva Parakram 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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