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________________ १४२-सम्यक्त्वपराक्रम (३) प्रकार उत्पन्न होते हैं ? इस प्रश्न के सम्बन्ध मे, जावरा में एक डाक्टर के साथ मेरी बातचीत हुई थी । डाक्टर ने कहा था कि शुक्र और शोणित को सूक्ष्मदर्शक यन्त्र द्वारा देखा जाये तो उममे अनेक कीडे दिखाई देते है । यह तो सूक्ष्मदर्शक यन्त्र से देखने की बात हुई । परन्तु अपने को तो भगवान् पर अटल विश्वास है । अतएव हमे मानना चाहिए कि उनका कथन सत्य ही है । भगवान् कह गये हैं कि हमारे साथ नौ लाख सज्ञी जीव उत्पन्न हुए थे, मगर वे नष्ट हो गए और मैं पुण्य के प्रभाव से बच गया । इस प्रकार प्रधान-शुभ कर्म के प्रताप से ही यह मनुष्यजन्म प्राप्त हुआ है । बडी कठिनाई से मनुष्यजन्म प्राप्त होता है । इस कारण उसका दुरुपयोग न करने के लिए जैनशास्त्रों मे बारम्बार उपदेश दिया गया है। अन्य दर्शन वाले भी मनुष्यजन्म को उत्तम और दुर्लभ मानते हैं । ऐसा दुर्लभ मनुष्यजन्म अपने को सहज ही मिल गया है तो किस प्रकार इसे सफल बनाना चाहिए, यह विचारणीय है। मनुष्यजन्म द्वारा ससारबन्धन को सुदृढ करना चाहिए या तोडना चाहिए ? अगर कोई कैदी अपनी कारागार की अवधि बढाए ता वह मूर्ख कहा जायगा, मगर तुम क्या कर रहे हो? इस शरीर मे तथा ससार मे रहना तो एक प्रकार के कारागार में रहना है । जैसे कैदी कारागार मे से निकलने की इच्छा रखता है और उसी के अनुसार वर्ताव करता है, इसी प्रकार तुम ससार रूपी कारागार से निकलने की भावना करो और वैसा ही वर्ताव करो । इस मानव भव मे अगर ससारकारागार से मुक्त होने की चेष्टा न की तो फिर कब
SR No.010464
Book TitleSamyaktva Parakram 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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