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________________ उनतीसवां बोल - १२६ मिट जाती है। चंचलता हट जाना और अनुत्सुकता पैदा होना त्याग का लक्षण है। त्याग करने पर अगर चचलता या उत्सुकता बनी हई हो तो समझना चाहिए कि सच्चा त्याग अभी हुआ ही नही है । सच्चा त्याग तब समझना चाहिए जब हृदय में तनिक भी चचलता न रह जाये । भगवान् का कथन है कि चचलता मिट जाने से और स्थिरभाव उत्पन्न होने से हृदय में अनुकम्पा उत्पन्न होती है । अनुकम्पा कितना श्रेष्ठ गुण है, इस विषय मे कहा गया है- दया धर्म का मूल है, पाप मूल अभिमान । अर्थात् दया-अनुकम्पा ही धर्म का मूल है । अनुकम्पा को सभी ने धर्म बतलाया है । जिसमे विषयसुख की लालसा नही होती उसे हो इस श्रेष्ठ धर्म की प्राप्ति होती है । साधारण तौर पर प्रत्येक व्यक्ति मे, न्यूनाधिक परिमाण मे अनुकम्पा का गुण विद्यमान रहता है । परन्तु जब स्वार्थ के कारण हृदय मे चचलता आती है तब अनुकम्पा अदृश्य हो जाती है । उदाहरणार्थ - गाय किसी को यहा तक कि कसाई को भी खट्टा दूध नही देती । फिर भी जब कसाई के दिल मे स्वार्थ के कारण तथा विषयलालसा के कारण चचलता उत्पन्न होती है तब वह निर्दयता के साथ गाय को कत्ल कर डालता है । विषयलालसा के कारण हृदय मे चचलता उत्पन्न होती है और चचलता के कारण अनुकम्पा का भाव कम हो जाता या सर्वथा नष्ट हो जाता है, ऐसा क्रम है । विचार करो कि तुम्हारे दिल में पशुओ के प्रति सच्ची दया है या केवल दया का दिखावा मात्र है ? अगर तुम्हारे
SR No.010464
Book TitleSamyaktva Parakram 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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