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________________ १२६-सम्यक्त्वपराक्रम (३) हृदय मे अनुकम्पा उत्पन्न न हुई, अतः जो निर्दय होकर अपने घर में भी अनुकम्पा का व्यवहार नहीं करता, उसने शास्त्र नहीं सुना बल्कि समझना चाहिए, उसने शस्त्र का प्रयोग करना सीखा है। मेघकुम र के शारीय उदाहरण के अनुसार एक खरगोश को बचाने के खातिर हाथी एक पैर ऊँचा करके व स पहर तक खडा रहा था । बीस पहर बाद जब दावानल शात हुआ और मडल मे आये हर जीव बाहर चले गए तो हाथी अपना पर नीचे रखने लगा । मगर बीस पहर तक पैर ऊँचा रखने के कारण उसका पैर रह गया था और वह जमीन पर गिर पड़ा। गिर जाने पर भी हाथी ने अनुकपा के विषय में तनिक भी बुरा विचार न किया । उसने यह नहीं सोचा कि खरगोश के साथ मेरा क्या सम्बन्ध था कि उसे बचाने के लिए मैंने पैर ऊपर रखकर इतना कष्ट सहन किया ! भगवान् ने कहा है -हे मेघकुमार । इस प्रकार की अनुकम्पा रखने के कारण हो तू हाथी-पर्याय से छूटकर राजा श्रेणिक के घर राजकुमार रूप में जन्मा और सयम धारण कर सका है। कहने का आशय यह है कि जो मनुष्य विषय-सुख के प्रति निस्पृह होता है, उसी मे अनुकम्पा का होना देखा जाता है । लोग जो बारीक, चिकने और मुलायम वस्त्र पहनते हैं, उनमे लगाई जाने वाली चर्वी के लिए कितने जीव मारे जाते हैं ? किसी दिन इस , वात पर विचार किया है ? विचार क्यो नही करते ? इसीलिए कि उन रेशमी और मुलायम वस्त्रो के प्रति तुम निस्पृह नही हो ! जबतक
SR No.010464
Book TitleSamyaktva Parakram 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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